Saturday, February 9, 2019

गौमुख से दिल्ली पदयात्रा भाग-1 (Gaumukh to Delhi-1)

गौमुख से दिल्ली पदयात्रा भाग-1 (Gaumukh to Delhi-1)




चींईईईई....की आवाज के साथ बस एक झटके से रुकी मेरे बराबर मे बैठे नितिन और रवि ने सोते हुए ही पूछा कि कहां आ गये। "मैने का उतरो कमीनों हम गंगोत्री पहुंच गये हैं" बस से उतरते ही अपने बैग कंधे पर लाद लिये जिनमें एक जोड़ी कपड़े और एक चादर है बस। 
सामने ही बने गंगोत्री द्वार के चरण स्पर्श करके गंगा मैया को प्रणाम कर अपनी हाजिरी लगा दी...गेट के पास ही बोर्ड लगा है जिस पर लिखा है "गौमुख 18 किमी" 
मैने भी एक अच्छे टीम लीडर की तरह नितिन और रवि को अपने पीछे आने को कहा और हम गौमुख के लिए चल पड़े हैं। श्रीराम मंदिर के पास जाकर ध्यान आया कि हमने खाना तो खाया ही नहीं और जल भरने के लिए कैन भी नही लीं....मैने नितिन को बोला तो उसने भृकुटि तान कर "प्रवचन" (इसका अर्थ आप @#$&%$# से लगा लेना) सुनाते हुए कहा कि अभी क्यूं बताया गौमुख पहुंच कर बता देता।
हम 2 किमी जाकर वापिस गंगोत्री आ गये हैं...ढाबे मे खाना खाते हुए मैं ढाबे के बंदे से आगे की जानकारी ले रहा हूं। उत्तरकाशी का रहने वाला ये बंदा बड़ा मिलनसार है और हर परांठे के ज्ञान फ्री मे दे रहा है...."भाई जी आज आप भोजवासा पहुंच जाओगे वहाँ लाल बाबा आश्रम मे रुक जाना 300 रुपये लगेंगे और कल दोपहर तक आप वापिस गंगोत्री भी आ जाओगे"

दोपहर के 2 बजे हमारी यात्रा पुनः प्रारम्भ हो गयी है...अब हमारे बैग मे कपड़े, चादर के अलावा पानी की कैन विद बैग हैं और हाथों डंडे भी आ गये।

श्रीराम मंदिर के पास ही आगे जाने की परमिशन भी मिल गयी...इन्होंने 150 रुपये ले लिये तीन दिन की परमिशन दी। मैने समझाया भी कि हम तो कल ही वापिस आ जायेंगे तो दो दिन के पैसे लो। उस बंदे ने कहा कि "पैसे तो तीन दिन के ही लगेंगे चाहें एक दिन मे वापिस लौट आओ" जब उसके समझाने के सभी तरीक़े फेल हो तो उसने आखिरी तीर "ब्रह्मस्त्र" चलाया कि चलो तुम लोग वापिस जाओ आज जाने का समय खत्म हुआ...इतने मे नितिन ने बात सम्हालते हुए कहा कि "सर जाने दो ये तो बावला है"

अब हमारे पास परमिशन है...और हम गौमुख की तरफ चल पढ़े हैं। रास्ता भी ठीकठाक है पर मेरी सांस फूल रही है इसलिए धीरे धीरे चल रहा हूं...नितिन बार बार आगे जाकर आराम करने लगता है और मुझे पहुंचते ही "चल आगे बैठेंगे" कह कर निकल जाता है।

आगे लकड़ी का (पेड़ के तनों) का पुल बना है जिसके नीचे से पानी यमुना एक्सप्रेस वे पर चल रही गाड़ी की स्पीड से बह रहा है। हम डंडों को टिकाते हुए धीरे धीरे निकल गये अब हमारे साथ चल रहा एक खच्चर वाला हमें डरा रहा है कि भैजी पिछले साल इस पुल पर हरियाणा के कांवडिये बह गये थे और अभी आगे दो पुल और भी हैं ऐसे ही। हम उसकी बातों को अनसुना करके आगे निकल आये...तीनों पुल पार करके एक टीन शेड सा दिख रहा है। अरे ये तो चीड़वासा है कह कर नितिन ने बोर्ड की तरफ इशारा किया...मैने भी "हूं" मे जबाब दिया और यहां बनी चाय की दुकान के बाहर पसर गया। यहाँ बढ़िया मीठा और काला गरम पानी मिल रहा है जिसे सब चाय बोल रहे हैं...एक एक कप चाय और एक एक पारले जी हम तीनों ने उदरस्थ करके जब बिल पूछा तो पैरों तले से जमीन खिसक गयी। भाई 90 रुपये हो गये कह कर दुकान वाला हिसाब समझाने लगा कि 20 की चाय और 10 का बिस्कुट... पैसे देने के अलावा और कोई चारा ही नही है सो पैसे भी दे दिये।

हम 3 घंटे मे लगभग 9 किमी चल चुके हैं और अब शाम के 5:30 बज रहे हैं...गौमुख से लौट रहे लोग हमें वापिस लौटने या यहीं चीड़वासा मे रुकने की सलाह दे रहे हैं। हमने चाय वाले से रुकने के लिए पूछा तो उसने बड़े प्यार से कहा "बस 1000 एक जने के इसमे रात का खाना,सुबह की चाय नाश्ता सब मिलेगा" मैने नितिन से कहा भाग ले बेटा यहाँ से नहीं तो ये बैठने के भी पैसे मांग लेगा।

हमने आगे की राह पकड़ ली पर थोड़ी देर मे ही अंधेरे का अहसास होने लगा...हमारे पीछे दो लड़के और आ गये जो अभी तक उस कैंटीन मे किसी के आगे जाने के इंतजार मे बैठे थे।

मैने नितिन से कहा कि वो जो नीचे मकान सा दिख रहा है वहां चलते हैं वहीं रुक जायेंगे... जब वहां पहुंचे तो उस वन विभाग की हट मे कोई भी नहीं था। मैने नितिन से कहा कि ये जो अंदर बोरियां पड़ी हैं इन पर लेट जायेंगे और चादर हमारे पास है ही तो रवि बीच मे बोल पड़ा "अबे ऐसे कैसे रुक जायें रात को भालू या शेर आ गया तो"

हम गंगा की तलहटी मे खड़े हैं अंधेरा थोड़ी सी देर मे हो ही जायेगा... थकान से उस कैंटीन मे जाने का मन नहीं कर रहा। मन को तसल्ली इस बात की है कि हमारे साथ दो बंदे और फसे हैं हम ही अकेले बेबकूफ नहीं हैं......

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