Sunday, February 2, 2020

गौमुख से दिल्ली पदयात्रा भाग-2 (Gaumukh to Delhi-2)

गौमुख से दिल्ली पदयात्रा भाग-2 (Gaumukh to Delhi-2)





यह यात्रा जुलाई 2012 मे करी थी...इसके बाद मे (2011,2015,16) और पहले भी गया हूं पर इस यात्रा से कुछ मीठी यादें जुड़ी हैं।


हम थक कर इधर ऊधर नजर दौड़ा रहे हैं...शायद कोई मदद मिल जाये तभी दो हरियाणा के बंदे गौमुख की तरफ से आते हुए दिखे जो हमारी तरफ ही आ रहे हैं। हमारी करुण कहानी सुन कर वो हमें पास ही एक आश्रम मे ले गये जो अभी तक हमारी आंखों से ओझल था...आश्रम के अंदर आग जली हुई है दो बाबा बैठे हुए हैं जो बड़े बाबाजी के चेले हैं। उन्होंने हमें यह कर रुकने दिया कि बड़े बाबाजी की परमिशन मिलेगी तभी रहने दिया जायेगा...मैने भी हां बोल दिया। भूख और ठंड दोनों एक साथ लग रही हैं...ठंड से आग और चादर बचा लेगी पर रोटी किससे मांगे। बड़े बाबाजी आधे घंटे मे ही प्रकट हो गये...उन्होंने हमे रुकने की आज्ञा दे दी है और साथ ही दो रोटियां आलू की सब्जी के साथ।

बोरियां बिछाकर चादर और बाबाजी के दिये कंबल ओढ़ लिये हैं पता ही नहीं चला कब सुबह हो गयी।

सुबह बाबाजी के बताये स्थान पर हल्के हुए...और चाय पीकर फिर मिलने का वादा करके गौमुख की तरफ निकल लिये।

आगे नीचे की तरफ भोजवासा का लालबाबा आश्रम भी दिख रहा है पर हमें आज वहां नहीं जाना...हम सीधे चलकर बड़े बड़े बोल्डरों के बीच से निकल कर सीधे गौमुख आ गये हैंं जहाँ मां गंगा का उदगम स्थल है। हम झटपट नहाने के लिए तैयार हैं पर हमसे पहले नहाने वालों की हालत देख कर हम तीनों लखनवी अंदाज मे पहले आप पहले आप का राग अलाप रहे हैं। नितिन बड़े जीवट वाला बंदा है तो पहले वही नहाया...एक,दो,तीन,चार.....ग्यारह...हां जी पूरे ग्यारह लोटे पानी खर्च किया है पर भीगा कम है। नितिन की हालत देख मुझे अपने ऊपर तरस आ रहा है कि आज तो फस गया...मैने भी हिम्मत बटोरी और एक,दो,तीन,चार,पांच...हां जी पूरे पांच लोटे पानी से नहा ही लिया।

हम तीनों नहा धोकर जल भर के वापिस चल पड़े हैं...रह रह कर ठंड से फुरफुरी छूट रही है और सूरज देवता बादलों के बीच अठखेलियाँ करने मे मस्त हैं। हम मस्ती मे चल रहे हैं....आगे नितिन पीछे मैं और सबसे पीछे रवि। तभी नितिन चिल्लाया कि "लाला भाग" मैं जड़वत खड़ा हो गया कि भागूं कहाँ ये पूरा पहाड़ तो कच्चा है और पतली सी पगडंडी है अब आगे भागूं या पीछे इतना सोचते सोचते एक पत्थर भड़ाक से आकर गिरा बिल्कुल नितिन के पैरों के पास....नितिन भी शून्य की गहराइयों मे खो गया। मैने नितिन के पास पहुंच कर उसे तसल्ली दी और सीधे पहुंचे चीड़वासा की उस दूकान मे चाय पीने के लिए।

हमारा अगला ठिकाना हैं श्रीराम मंदिर जहाँ खीर का लंगर चल रहा है...मैने झटपट दो दोने खीर निपटा दी। नितिन गंगोत्री मे रुकने को कह रहा है और मेरा मन भैंरोघाटी मे रुकने का है मगर मैने नितिन को इस बारे मे बताया नहीं.... यहां से चलकर मैं इन दोनों को उस रास्ते से ले आया जो गंगोत्री द्वार के पास निकलता है। जहाँ हम उतरे वहाँ कोई होटल खाली नही है तो मैने नितिन से भैंरोघाटी चलने को कहा..."पहले तो उसने जी भर के गालियां दी फिर पूछा कितनी दूर है भैंरोघाटी" मैने सामने दिख रही लाइटों की तरफ इशारा करके कहा बस वहीं है।

हम चल तो पड़े पर वो लाइटें तो गंगा के उस पार बिजलीघर की हैं...जो हमें थोड़ी दूर चलने पर पता चला। नितिन ने खा जाने वाली नजरों से मुझे देखा और बोला अच्छा किमी तो बता दे। मैने कहा भाई पतो नी मगर एक घंटे मे पहुंच जायेंगे... एक घंटे बाद भी भैरोंघाटी का कोई नामोनिशान नही है हार कर नितिन अपने असली रुप मे आ गया और गोली की स्पीड से भागने लगा और मैं उसके पीछे पीछे हांफता हुआ पकड़ने की पुरजोर कोशिश कर रहा हूं। अगले आधे घंटे मे हम भैंरोघाटी मे थे जहाँ नितिन मेरे मुझसे पहले पहुंच कर स्वागत करने को तैयार खड़ा है....मेरे पहुंचते ही "जोरदार प्रवचनो" से मेरा स्वागत हुआ। मैने उससे इस बात का कारण पूछा तो बड़ी मासूमियत से बोला भाई मुझे शूशू लगी थी...इतना सुन कर मेरी हसी छूट गयी।

थोड़ी ही देर मे हम खाना खाकर सोने की तैयारी कर रहे हैं और नितिन मुझे कल सुबह जल्दी उठने की घुट्टी पिला रहा है।

मैंने भी बोल दिया चल देखते हैं....

No comments:

Post a Comment