Sunday, February 2, 2020

गौमुख से दिल्ली पदयात्रा भाग-6 (Gaumukh to Delhi-6)

गौमुख से दिल्ली पदयात्रा भाग-6 (Gaumukh to Delhi-6)





"माए नी मेरिये....चमुआ दां राहें...चंबा कितनी दूर...." आज सुबह से ही "करनैल राणा" की आत्मा मेरे अंदर घुस कर इस हिमाचली लोकगीत को गुनगुनाने को मजबूर कर रही है....मैं बहुत धीरे धीरे गाता हुआ अकेला ही चल रहा हूं। नितिन और बाकी साथी भी आज उखड़े हुए से लग रहे हैं शायद रात की घटना से सभी "बैरागी" हो गये हैं।
आज हम बहुत दूर तक टिहरी डैम रिजर्वायर के साथ चलेंगे...मां गंगा यहाँ तक ठहरी हुई सी जान पड़ती हैं। विशाल हरी झील बहुत दूर तक फैली है। सामने ही कहीं नयी टिहरी बसा दी गयी है। पुरानी टिहरी का दर्द अभी भी गीतों के रुप मे गढ़वाली गानों मे सुना जा सकता है। अब टिहरी झील मे वाटर स्पोर्ट्स भी होते हैं...दिल्ली एनसीआर वालों के लिए वीकेंड का अच्छा डेस्टिनेशन बन जायेगा कुछ दिन में।


दोपहर तीन बजे करीब हम चंबा पहुंच गये हैं। इस चंबा का पुराना नाम चमुवा था जो चम्मा होकर चंबा बन गया है। यहां आराम करने के दौरान मैं और नितिन एक दूसरे से नजरें चुरा है,हम मुंह फेर कर बैठ गये हैं। आज रात को नागनी रुकेंगे... कह कर नागेश चलने को तैयार खड़ा है और उसके पीछे हम भी। हम गब्बर सिंह चौक पर खड़े हैं यहां से हम शॉर्टकट के रास्ते जायेंगे जो खड़ी उतराई का है। नागनी मे भारी भीड़ देख कर हम यहाँ रुकने का इरादा त्याग कर और आगे चल पड़े हैं....यहां एक जलधारा इस जगह की सुंदरता को बढ़ा रही है।
अभी आधा घंटा भी नही हुआ चलते हुए और काले मेघों ने झमाझम बारिश से हमारा रास्ता रोकने की पूरी तैयारी कर ली है मगर इन काले मेघों को शायद पता नही है कि हमारे पास उससे बचने का कोई साधन नही है। हम बिना रुके भागे जा रहे हैं....आगे लैंडस्लाइड से मलबा सड़क को घेर चुका है और हमारे पास रोशनी का कोई साधन नही है मलबे में पैर फंसा फंसा कर निकलने के चक्कर में मेरे तलवे मे हुआ छाला फूट गया। अब मुझसे चला नहीं जा रहा...नागेश,इंदर और रवि आगे रुकने की कह कर निकल लिये। मैने नितिन को भी उनके साथ जाने को कहा तो उसने मेरा साथ छोड़ने से मना कर दिया। हम बातें करते हुए धीरे धीरे चल रहे हैं बारिश बंद हो चुकी है....बातों बातों मे नितिन चंबा की बात पूछ बैठा तो मैने बताया कि मैं तो रो रहा था इसलिए मुंह फेर कर बैठा था पर तुझे क्या हुआ था तूने क्यूं मुंह फेर रखा था। "भाई मैं भी रो रहा था" कह कर नितिन ने सामने जल रही लाईटों की तरफ इशारा करके कहा बस पहुंच ही गये मंजिल के पास।

अगली सुबह हमारी पैदल यात्रा का सातवां दिन है शायद आज हम पहाड़़ों से नीचे उतर जायेंगे...खाड़ी तक रास्ता उतराई वाला है उससे आगे आगराखाल तक चढ़ाई है। हम हिंडोलाखाल के पास खड़े हैं यहां से कुंजापुरी मंदिर को रास्ता जाता है। अगला पड़ाव नरेन्द्र नगर है....शाम के समय यहां से शानदार सूर्यास्त और रात मे नीचे चमकती लाईटें बहुत आकर्षक लगती हैं।
शाम 5 बजे नरेन्द्र नगर पहुंच कर मैं यहीं रुकने की सलाह दे रहा हूं जिसे कोई ले ही नही रहा...आखिर मैं भी सबके साथ ही आगे रुकूंगा। "भाई आधे घंटे मे आगे आईटीआई तक शॉर्टकट से और आईटीआई से आधा घंटा ऋषिकेश तक का" कहते हुए नागेश चहक कर आगे चल रहा है और हम पीछे। आईटीआई भी आ गयी और जंगल वाला शॉर्टकट भी जहाँ तीन चार बंदे और खड़े हैं कि कोई साथ आये तो चलें...मगर थोड़ी देर मे अंधेरा हो जायेगा फिर यह जंगल का रास्ता सुरक्षित नही रहेगा। सर्वसम्मति से फैसला हुआ कि रोड़ से ही जायेंगे... मगर भयानक काला अंधेरा और नोकिया मोबाईल की टॉर्च के सहारे आठ दस किमी चलना वो भी जंगल की रोड पर अब नितिन को नरेन्द्र नगर ना रुकने के फैसले पर अफसोस हो रहा है। मैं मन की आंखों से नितिन को बेईज्जत कर चुका हूं...अचानक पीछे से आती कुछ आवाजों ने हमें सतर्क होने पर मजबूर कर दिया। डर के मारे घिग्गी बंध चुकी है मगर ये क्या...खोदा पहाड़ निकली चुहिया। ये आवाजें एक डाक कांवड़ की हैं जो गौमुख से सोमनाथ जा रही है।
जंगल की ओर से कुछ आवाजें,चमकती हुई आंखें हमें चलने की बजाय दौड़ा रही हैं और हम साढ़े नौ बजे भद्रकाली मंदिर आ गये हैं जहाँ पुलिस वाले हमें आगे जाने की सलाह दे रहे हैं।
अगला कैंप सत्यनारायण मंदिर मे मिलेगा पर वहां तक चलने की हिम्मत और समय नही है तो भाग कर हमने मंदिर के चबूतरे मे आसन जमा लिया। पुलिस वाले हाथी का डर दिखा रहे हैं तो हमने भी बोल दिया कि हाथी आये तो जगा देना....
भोजन भी सुबह ही मिलेगा उस पर नितिन कह रहा है "लाला एक बात बताऊंगा कल तुझे" इतने शब्द सुन कर नींद गायब हो रही है बाकी कल देखते हैं।










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