Sunday, February 2, 2020

गौमुख से दिल्ली पदयात्रा भाग-4 (Gaumukh to Delhi-4)

गौमुख से दिल्ली पदयात्रा भाग-4 (Gaumukh to Delhi-4)



"भाई जी कमरा मिलेगा क्या..." मेरा ये सवाल सुनते ही उस बंदे ने ऐसे देखा जैसे मैने उसकी किडनी मांग लीं हों। "सभी कमरे भर गये हैं और आप ऊपर जाकर देख लो कोई खाली हो तो" इतना कह कर वो ऊपर चढ़ गया। हम गंगनानी मे खड़े हैं यहाँ गरम पानी कुंड है...सुबह गरम पानी मे नहाने का लालच हमें एक दिन मे भैंरोघाटी से यहां खींच लाया है।
ऊपर चढ़ने की हिम्मत हममें से किसी की नहीं हो रही...सामने ढाबे वाले से पूछा तो उसने अपने यहां रुकने का ऑफर दिया बस 100 रुपये में रहना,खाना एक जने का। जमीन पर बिस्तर बिछे हुए हैं और तीन रजाई मिल गयीं....खाना खाकर ऐसी ठंड लगी कि तीनों ने एक ही जगह सोने का निश्चय कर लिया।


अगले दिन दोपहर मे हम पायलट बाबा के आश्रम मे रुके हुए हैं। गंगा किनारे बने इस आश्रम मे बहुत शांति है यहाँ से थोड़ा पहले ही लाटा नाम की जगह है जहाँ से केदारनाथ जाने का पैदल रास्ता अलग हो जाता है। आज हमें उत्तरकाशी पहुंचना है मगर आज चलने मे मजा नहीं आ रहा...शाम होने को आ गयी है और अभी हम नेताला पहुंचे हैं। मैने नितिन को बोला कि चल यहीं रुक जाते हैं तो उसने मुझे ऐसे देखा जैसे मैं उससे ऊधार दिये पैसे मांग रहा होऊं। मैने तिकड़म भिड़ाई कि चल थोड़ी देर बैठ जा फिर चलते हैं...उसके बैठते ही मैं चाय ले आया और उसे चाय देते हुए कहा कि कल सुबह जल्दी उठ जाऊंगा और रात तक धरासू पहुंच कर ही रुकेंगे... बोल क्या कहता है। थोड़ी आनाकानी के बाद नितिन भी रुकने को राजी है।
यहां हमें दो बुजुर्ग मिले दोनों यूपी के बड़ौत के रहने वाले हैं...इनकी आंखें कमजोर हो चली हैं और यह अपनी टोली से बिछुड़ गये हैं...इनके साथी (गांव के जवान लड़के) आगे निकल गये हैं। हमनें सुबह इन्हें अपने साथ ले लिया इन दोनों के पास एक ही थैला जिसे मैं और नितिन बारी बारी से उठा रहे हैं...आज का पूरा दिन सत्संग चला। दोनों बूढ़ों की उम्र 60 के आसपास पहुंच गयी है और यह उनकी 39 वीं कांवड़ यात्रा है...."40 वीं यात्रा का भोला मालिक है" कहते हुए एक बाबा पुराने दिनों को याद करके बताते हैं कि जब हमने इस यात्रा की शुरुआत करी थी तब हमें यहां के लोग हमें "बाबा" (सभी कांवड़ यात्रीयों को) कह कर बुलाते थे....जब इतनी सुविधाएं नहीं थीं कैम्प भी नहीं लगते थे। गांव के लोग ही रहने खाने का इंतजाम कर देते थे। जैसे जैसे तरक्की होती गयी वैसे ही सुविधाएं बढ़ गयीं...हरिद्वार मे बढ़ती भीड़,डीजे,भूहड़ता ने गांव वालों को हमसे दूर कर दिया है।
बातों बातों मे कब उत्तरकाशी,मातली पार करके डूंडा आ गये पता ही नहीं चला....दोनों बुजुर्गों के साथी भी मिल गये जो स्वयं पर शर्मिंदा होकर हमें धन्यवाद बोल रहे हैं....

अपनी पैदल यात्रा के चौथे दिन हम धरासू आकर रुके...इन चार दिनों मे हम लगभग 130 किमी की दूरी तय कर आये हैं। यहां हमें दो साथी और मिल गये हैं नागेश और इंदर...दोनों दिल्ली से ही हैं तो हरिद्वार तक तो साथ रहेंगे ही।











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