Sunday, February 2, 2020

गौमुख से दिल्ली पदयात्रा भाग-3 (Gaumukh to Delhi-3)

गौमुख से दिल्ली पदयात्रा भाग-3 (Gaumukh to Delhi-3)



सुबह के 5 बज रहे हैं...अचानक मेरी नींद खुली उस अलार्म जैसी आवाज से। एक आंख से देखा तो नितिन मेरी छाती पर मूंग दल रहा है "लाला उठ जा-लाला उठ जा" का जाप करते हुए।अगले ही पल मैने पांच कंबलो को रजनीकांत के स्टाईल मे उतार फेंका और सीधा नितिन से मुखातिब हुआ...हां बोल क्या बात है।

डरते सहमते नितिन ने मां को याद करते हुए कुछ प्रवचन सुनाये और बोला जल्दी जाकर तैयार हो हमें दिल्ली भी पहुंचना है। मैं उदास सा ठंड मे लिपटा आधे घंटे मे टैंट से बाहर निकला। बाहर का नजारा बड़ा ही भक्तिमय है चहुं ओर से धूपबत्ती की सुगंध और सूर्योदय के होने का अहसास बहुत ही हसीन शमा बना रहा है।


मैं भी रवि को लेकर फ्रेश होने की जुगाड़ मे भैरों मंदिर के पीछे की तरफ आ गया हूं....जहाँ हमारा सामना गुलशन मे फैले पीले फूल और दर्जनों खाली बोतलों से हुआ। मैं सम्हलता हुआ थोड़ी सी जगह बनाने की नाकाम कोशिश करता रहा पर कुछ फायदा ना हुआ। थक हार कर मन को समझाया कि कल खाया ही कितना था जो निकलेगी। एक घंटे बाद वापिस टैंट मे पहुंचा तो नितिन उकड़ू सा बैठा हमारे इंतजार मे दुबला हो रहा है। मेरे पहुंचते ही मां को याद कर कुछ कहने की कोशिश करने लगा पर मैं ऐसे समय पर इसकी बातें नही सुनता।

अब हम तीनों नहाने की लाईन मे खड़े हैं जहाँ 20 रुपये मे गरम पानी मिल रहा है।मेरा नहाने का नंबर आते ही नितिन भाग कर एक छोटे से तंबू मे घुस जाता है जो शायद एक अस्थाई शौचालय है। मैं असमंजस की स्थिति मे हूं अगर मैं भी ऊधर गया तो नहाने का नंबर कटा खैर मैं नहा ही लिया।

नहाने से दिमाग की नसें खुल गयीं जिनका साईड इफेक्ट ये हुआ कि नितिन के दिये प्रवचन दिल मे जगह बना रहे हैं और मैने भी अकेले दिल्ली चलने का निर्णय ले लिया है...कुछ देर बाद रवि हम दोनों का बातचीत का माध्यम बना ठीक ऐसे ही जैसे मियां बीबी के झगड़े मे बच्चा।

नितिन आगे भागने की नाकाम कोशिश कर रहा है जिसे मैने भैरोंचट्टी से निकलते ही शॉर्टकट लगा कर नाकाम कर दिया। रवि का झुकाव भी मेरी ओर होने से नितिन का पारा सातवें या आठवें आसमान पर है। मैंने रवि से बोल दिया है कि शॉर्टकट का ध्यान रखे मैं बताता रहूँगा तुझे...लंका,कोपांग, धराली कब पार हो गये पता ही नहीं चला अब आगे हर्षिल आयेगा और उसके बाद झाला।मैं हर्षिल मे थोड़ा आराम करना चाहता हूं पर नितिन आगे निकल गया उसे पकड़ने के चक्कर मे मैं भी झाला तक आ गया...पैरों को भी चक्कर आने लगे हैं कदम बहकने लगे हैं।

मैं सोच रहा हूं कि नितिन रुकने को बोले पर वो तो ऐसे खड़ा है जैसे उड़ कर यहां तक आया हो। मैने भी अपनी बची खुची ताकत को इकट्ठा किया और रवि से कहा कि चल सुक्खी टॉप पर रुकेंगे... जो झाला से लगभग 1 किमी की खड़ी चढ़ाई के बाद है। नितिन स्पाईडरमैन की तरह आधे घंटे मे टॉप पर पहुंच गया और में अपने कदमों और सांसों के बीच डंडे को टिकाते हुए पूरे एक घंटे मे पहुंचा। नितिन ने रवि के हाथ गरमा गरम चाय भिजवा कर गुस्से थोड़ा शांत कर दिया है...हम दोनों मुस्कुरा तो रहे हैं पर एक दूसरे से नजरें चुरा कर ठीक प्रेमी युगल की तरह। 22,23 किमी की लगातार पैदल चलने से अंजर पंजर ढीले हो गये हैं जिन्हें गरम पराठों,मक्खन,चाय के बिना कसना मुश्किल है।

फोटो लगाने की वजह से बस इतना ही लिखा है आगे कम शब्दों मे ज्यादा लिखने की कोशिश करुंगा😊🙏











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