Sunday, February 2, 2020

गौमुख से दिल्ली पदयात्रा भाग-5 (Gaumukh to Delhi-5)

गौमुख से दिल्ली पदयात्रा भाग-5 (Gaumukh to Delhi-5)





"लाला इधर देख यहां से चंबा 28 किमी कम है" कहते हुए नितिन चहक उठा और सुनते हुए मैं...हम चिन्यालीसौढ मे खड़े हैं अच्छा खासा बाजार है ये,यहां से चंबा जाने के तीन रास्ते हैं। पहला सीधा सड़क मार्ग,दूसरा कमांद तक सड़क उसके बाद शॉर्टकट लगाकर चंबा मसूरी रोड से होकर और तीसरा जो नितिन दिखा रहा है स्यांसू,उप्पू,सिराई,दोबाटा होकर।

नागेश और इंदर इसी रास्ते से जा रहे हैं। अब नया रास्ता देखना तो बनता ही है तो हम भी इसी रास्ते पर चल पड़े हैं। चिन्यालीसौढ मार्केट से ही बायीं ओर उतर कर पैदल पुल पार करके हम "चंबा-धरासू मार्ग" पर आ गये हैं....


इस रास्ते पर धूप बहुत परेशान करती है इसलिए हम जल्दी से जल्दी स्यांसू पुल पहुंचना चाहते हैं...इस चक्कर मे दो दुकानें भी छोड़ दी इसका साइड इफेक्ट ये हुआ कि सुबह आंवले का मुरब्बा खाकर निकला नितिन भूख से बेहाल है और मेरे मजाक उड़ाने पर प्रवचन सुना कर तमतमाया भागा जा रहा है।

इस रास्ते पर हरियाली बहुत है...शायद हमारे यूपी की कहावत "तेरी हरे मे फूट गयी हैं" यहीं से बनी हो। बायीं ओर पहाड़ दाईं ओर टिहरी डैम का रिजर्वायर (इसे गंगा कहना बेमानी होगी) बड़ा ही खूबसूरत शमा बनाता है,सब कुछ हरा ही हरा। इस मार्ग पर इक्का दुक्का गाडियां ही आ जा रही हैं बाकी तो पूरी रोड पर अपना कब्जा है....एक जगह यह रोड़ घाटी के बहुत अंदर से घूम कर सामने दिख रहे गांव के पास आती दिख रही है। जिसे देख कर मैं,रवि,नागेश शॉर्टकट से निकलने के लिए नीचे उतर गये ये सोच कर की "उड़ते हुए नितिन" से पहले पहुंच जायेंगे।

नीचे खाई मे उतरने के लिए बहुत से धान के खेत रौंद डाले,अनगिनत झाड़ियाँ नीचे दब गयीं पर इस नाले पर तो नजर गयी ही नहीं जो बाहें फैलाये हमें डुबाने को तैयार है... "भोले आज तो फसा दिये" कह कर हम देख रहे हैं कहीं से पार होने की जगह मिले। आधा किमी ऊपर की तरफ जाकर इस नाले की धारा कुछ छोटी हुई जहाँ से हम पार तो हो गये पर गांव की तरफ जाती पगडण्डी खो गयी जिसे ढूंढने के चक्कर मे हम अपने हाथ पैर छिलवा चुके हैं....आधे घंटे भटकने के बाद एक खेत मिला और उसके साथ जाती एक पगडण्डी जो हमें गांव तक ले आयी है। पगडण्डी के अंतिम छोर पर खड़ा नितिन पूरे 32 दांत निकाल कर हस रहा है....मन तो कर रहा है इसके दांत तोड़ दूं मगर @#%$& बस इतना ही बहुत है।

धूप से बेहाल हम स्यांसू पुल की ओर बढ़ रहे हैं जो हाथ (पैर) आने का नाम ही नहीं ले रहा...तभी नागेश बोला उस पार लंगर लगा है वहां "चाय" मिल जायेगी। मैं चाय-चाय चिल्लाता हुआ पुल पार कर चुका हूं मगर ये क्या यहां तो कोई लंगर नहीं है बस एक चाय वाला बैठा है जिसके पास गिलास ही खत्म हो गये हैं।

अपनी किस्मत को कोसते हुए हम भल्डियाना गांव आ गये हैं ये गांव कभी बहुत सम्रद्ध हुआ करता था टिहरी डैम बनने से आयी खुशी यहां दुख दे गयी...अब यहां पुराने मकान (घर नही) बुजुर्ग बचे हैं बाकी सब पलायन मे बह गये (कानों सुनी बातें हैंं)

उप्पू पुल पर पांडव नगर दिल्ली वालों का लंगर लगा है... यहां रात को सोने का समय हुआ ही था कि बारिश चारों ओर से घेर कर मारने की सोच रही है। टैंट टपक रहा है....बार बार बल्लियों से पानी निकालने के चक्कर मे टैंट भी फट गया और पास के एक पहाड़ पर भूस्खलन शुरु हो गया है जिसमें पत्थरों के गिरने से आती आवाज ही डराने के लिए काफी है।

एक घंटे बाद बारिश तो बंद हो गयी पर सब कुछ भीग गया...पूरी रात गीली जमीन पर पॉलिथिन बिछा कर कटेगी।

आज मन मे वैराग्य हो गया है...देखो क्या असर होगा
















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